आ गए राम!


आ गए राम!

मन की ड्योढ़ी पर. 

तनिक ठहरो ,

नयन अश्रु की अंजलि से,

पखार लूँ तुम्हारे पाँव। 

आ गए मेरे राम। 

देखो इन गलियों को,

सजी हैं नयन पसारे। 

तनिक देखो,

नव-वधु सी तुलसी के क्यार,

मचल रही सज जाने को तेरे थाल। 

आ गए राम,

मेरी कुटिया में। 

मैं शबरी तो नहीं,

सजा दूँ राह फूलों से,

चख कर दूँ मीठे बेर। 

ना ही अहिल्या सी,

तर जाऊँ तुम्हारे चरणों से। 

मैं तो,

उलझी हुई सी,

एक दासी हूँ तुम्हारी। 

सुलझा दो मेरे राम!

आ गए राम,

ठहर ही जाना। 

———— प्रतिमा त्रिपाठी शुक्ल